ओ चंदन-वन के मलयानिल ! सच बोलना, - सोए थे नाग सभी, सहसा तुम चले तभी ? वर्ना क्या शाखों के साथ अभी तुम्हें भी पड़ता किरणों में विष घोलना ? - सच-सच बोलना !
हिंदी समय में राजेंद्र प्रसाद सिंह की रचनाएँ